इस देवी दरबार में अनुष्ठान से बंद हुआ था भारत-चीन युद्ध

 

मां पीताम्बरा देवी की मोहक प्रतिमा

पीताम्बरा पीठ भारत की विख्यात शक्ति स्थलों और पीठों में से एक है। यह मध्यप्रदेश के दतिया नगर में मौजूद है। पीताम्बरा देवी को युद्ध, विवादों और मुकदमों में विजय दिलाने वाली और रक्षात्मक देवी के रूप में माना जाता है। भारत का इकलौता धूमावती माता मंदिर भी इसी पीठ के परिसर में मौजूद है। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के समय पीताम्बरा पीठ में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध विराम के लिए अनुष्ठान हुआ था। इस अनुष्ठान की पूर्णाहुति के दिन ही युद्ध विराम की घोषणा हुई थी, वह ऐतिहासिक  यज्ञशाला इस मंदिर परिसर में मौजूद है। 

ऐसा कहा जाता है कि जिस जगह पर अब पीताम्बरा पीठ स्थित है, वहां पहले श्मशान हुआ करता था। लेकिन बाल ब्रम्हचारी स्वामी जी महाराज ने 1935 में यहां पीताम्बरा पीठ की स्थापना कराई और उसमें मां पीताम्बरा देवी की मोहक प्रतिमा स्थापित हुई। अब मुख्य मार्ग पर ही स्थित इस पीठ का प्रवेश द्वार भी भव्य बन गया है, प्रवेश द्वार पर ही दर्शनार्थियों से उनके मोबाइल, कैमरे आदि जमा करवा लिए जाते हैं। इसके लिए 10 रुपए प्रति मोबाइल शुल्क देना होता है, मोबाइल अंदर ले जाने या उसके उपयोग की कतई अनुमति नहीं है। इसके बाद कुछ दूर पैदल चलकर पंक्तिबद्ध होकर माता के मंदिर में पहुंचा जाता है, जहां खिडक़ी के बाहर से ही माता के दिव्य दर्शन होते हैं। प्रतिमा छोटी लेकिन अत्यंत मोहक है, इससे नजरें हटाए नहीं हटतीं और मन करता है कि अपलक देवी को निहारते रहें। यही कारण है कि दर्शन के बाद भी दर्शनार्थी परिसर में बैठे रहते हैं कि कुछ देर बाद ही सही उनकी एक झलक फिर से मिल जाए। इस प्रतिमा में देवी अपने हाथों में मुग्दर, पाश, वज्र और शत्रु की जीभ पकड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका यह स्वरूप शत्रु पर विजय के साथ ही भक्त को अभयदान देता है। युद्ध, मुकदमों तथा विवादों में इनका अनुष्ठान विशेष फलदाई माना जाता है। देवी की यह प्रतिमा जिस गर्भग्रह में स्थापित है वहां प्रवेश वर्जित है। बाहर दर्शन क्षेत्र में से एक छोटी खिडक़ी नुमा स्थान से ही माता के दर्शन होते हैं। 

धूमावती माता मंदिर

पीताम्बरा पीठ परिसर में ही धूमावती माता का मंदिर मौजूद है। यह भारत का इकलौता धूमावती देवी मंदिर माना जाता है। यहां धूमावती माता अपने विकराल रूप में विराजित हैं। इस मंदिर में माता की पूजा और आरती सुबह-शाम होती है, लेकिन दर्शनार्थियों के लिए यह मंदिर केवल शनिवार को सुबह-शाम दो घंटे के लिए खुलता है। यही भी खास बात है कि यहां यहां देवी को नारियल, चिरोंजी या मिष्ठान का नहीं बल्कि नमकीन, मंगोड़ी, भजिए, समोसे, कचौड़ी आदि का भोग लगता है। इस मंदिर में सुहागन स्त्रियों और कन्याओं का प्रवेश और धूमावती माता के दर्शन प्रतिबंधित है। 

आध्यात्मिक शक्ति का स्थल

पीताम्बरा पीठ में मोबाइल और कैमरों का यहां उपयोग पूरी तरह वर्जित है। यहां वनखंडेश्वर महादेव, हनुमान जी सहित अनेक देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं। परिसर में ही स्वामी जी महाराज का समाधि स्थल है और ऐसे अनेक स्थान हैं जहां तांत्रिक तथा विद्वान देवी आराधना और अनुष्ठान करते हैं। इस पीठ के पूरे परिसर में अनेक स्थानों पर अकेले ही देवी आराधना में लीन भक्तों को देखना यहां की आध्यात्मिक शक्ति का परिचायक प्रतीत होता है। यह भी खास बात है कि पीताम्बरा पीठ के बाहर ही मां को अर्पित करने के लिए प्रसादी की अनेक दुकानें मौजूद हैं और यहां दूध-मावे और बेसन से निर्मित उच्च कोटि का प्रसाद उपलब्ध है। बाहर ही फूल मालाएं, पूजन सामग्री भी उपलब्ध हो जाती है। जूते-चप्पल रखने के लिए भी अलग से काउंटर बना हुआ है, जिसमें टोकन लेकर निशुल्क जूते-चप्पल रख सकते हैं। 

कैसे पहुंचें ...

वायु मार्ग से दतिया पहुंचने के लिए ग्वालियर निकटतम हवाई अड्डा है। ग्वालियर पहुंचकर वहां से बस या टैक्सी के माध्यम से आसानी से 77 किमी दूर दतिया पहुंचा जा सकता है। दतिया पहुंचकर बाजार में ही मुख्य मार्ग पर ही पीताम्बरा पीठ है। ट्रेन के माध्यम से दतिया पहुंचना और आसान है। दतिया रेलवे स्टेशन दिल्ली-चैन्नई मुख्य मार्ग पर स्थित है और यहां दिल्ली, आगरा, मथुरा, ग्वालियर, झांसी, भोपाल आदि शहरों से कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। वहीं बसों के माध्यम से भी झांसी, ग्वालियर, आगरा,मथुरा,  ओरछा आदि शहरों से दतिया के लिए बसें उपलब्ध हैं जिनसे आना-जाना आसान है। यहां रुकने के लिए कई धर्मशालाएं और कुछ होटल हैं जहां ठहरा जा सकता है। इसके अलावा ग्वालियर में कई सुविधाजनक और आधुनिक होटल भी उपलब्ध हैं, जहां रुका जा सकता है।  

Post a Comment

Previous Post Next Post