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मैहर में मौजूद आल्हा उदल का अखाड़ा |
देवी से मिला था अमरता का वरदान...
दरअसल आल्हा-ऊदल चंदेल राजा परमालदेव के दरबार में सेनापति दसराज के पुत्र थे। ऐसा माना जाता है कि बचपन से ही आल्हा-ऊदल देवी मां के परम भक्त थे। वे मैहर में त्रिकूट पर्वत के नीचे बने अखाड़े में अपना अभ्यास करते थे और वहीं सरोवर में स्नान करते थे। उनका वह अखाड़ा और सरोवर आज भी आल्हा के अखाड़े और आल्हा तालाब के नाम से मौजूद है। यहां अभ्यास करते और देवी की आराधना के दौरान वे त्रिकूट पर्वत पर पहुंचे थे और यहां उन्होंने पहली बार देवी मां के दर्शन किए थे। यहीं से शारदा माता के बारे में जानकारी मिलना शुरू हुई। फिर यही देवी चंदेल वंश की कुलदेवी के रूप में पूजी जाने लगीं। आल्हा की मैहर की इन शारदा देवी में ऐसी आस्था थी कि उन्होंने कई वर्ष तक यहां तप कर उनकी साधना की थी और देवी को प्रसन्न कर अमरता का वरदान प्राप्त किया था। वे अखाड़े में अभ्यास करने के बाद सरोवर में स्नान करते और फिर उसी सरोवर में लगे कमल पुष्पों को देवी माता के मंदिर में ले जाकर माता का श्रंगार करते थे। परमवीर आल्हा-ऊदल ने अपने राज्य की रक्षा और क्षत्रिय धर्म निभाने की खातिर 52 युद्ध किए, जिसमें अद्भुत पराक्रम दिखाया। लेकिन पृथ्वीराज चौहान से हुए युद्ध में जब ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए तो आल्हा का दिल टूट गया। वे युद्ध से विरत होकर अदृश्य होकर माता की सेवा-पूजा मेंं ही समाहित हो गए। मान्यता है कि इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को उन्होंने कड़ी टक्कर देकर बुरी तरह घायल किया था, लेकिन गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने उन्हें जीवनदान देकर खुद वानप्रस्थ को चले गए थे। इसके बाद भी आल्हा की शौर्य गाथा को पूरे वीर रस के साथ बुंदेलखंड में गाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मैहर की शारदा देवी के वरदान से आल्हा अमर हैं और वे अब भी सूर्योदय से पूर्व माता के दरबार में पहुंचकर माता को पुष्प अर्पित करते हैँ और प्रथम पूजा उनके ही द्वारा की जाती है, जिसे स्वयं मंदिर के पुजारियों ने प्रमाणित किया है।
यह भी बहुत ही महत्वपूर्ण है कि अजेय और पराक्रमी योद्धा के रूप में मशहूर आल्हा को पूरे बुंदेलखंड में लोक देवता के रूप में माना ही नहीं जाता, बल्कि उनकी पूजा की जाती है। आल्हा के मंदिर हैं और उनकी प्रतिमाएं भी मंदिर में देवी-देवताओं के साथ विराजमान हैं। मैहर में देवी के प्रख्यात मंदिर के नीचे बने अखाड़े में आल्हा की प्रतिमा और उनके अखाड़े में प्रयुक्त होने वाले मुग्दर आदि मौजूद हैं। इसी तरह आल्हा तालाब किनारे बने देवी मंदिर को आल्हा का मंदिर कहा जाता है और उसमें आल्हा की प्रतिमा देवी की प्रतिमा के साथ पूजी जाती है। इस मंदिर में बीच में मातारानी की प्रतिमा है तो एक ओर हनुमान जी और दूसरी ओर आल्हा की प्रतिमा है। मान्यता के अनुसार यहां रखी तलवार और चरणपादुकाएं आल्हा की हैं। इसी तरह आल्हा तालाब के पास ही एक शिव मंदिर है, जिसके गुफा नुमा स्थान पर अखंड ज्योति जल रही है। यहां के लोग इस ज्योति को आल्हा द्वारा प्रज्जवलित की जाना मानते हैें। मैहर और महोबा सहित बुंदेलखंड के अन्य स्थानों पर भी आल्हा को लोक देवता के रूप में मंदिर और प्रतिमाओं के माध्यम से पूूजा जाता है। यह आल्हा की देवी भक्ति ही थी, जिसने उन्हें एक योद्धा से लोक देवता के रूप में स्थापित किया।
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