कांग्रेस की रस्सी जल गई, लेकिन बल नहीं गया....

कभी पूरे देश और राज्य पर निष्कंटक राज करने वाली कांग्रेस में मु_ी भर नेता और नाम मात्र के राज्य बचे हैं। सैंकड़ों बड़े नेता जहाज से कूद कूद कर भाजपा के खेमे में शामिल हो गए। लेकिन चंद बचे कांग्रेसियों की ठसक, आदतें और उनकी रस्सी का बल नहीं गया। कहीं भी होंगे, किसी भी मुद्दे पर बात होगी, आंदोलन होगा या फिर जनता के हित की बात पर एक होने की बात होगी तो अब भी अपनी ढपली-अपना राग की परम्परा अब भी कांग्रेस में बदस्तूर जारी है।


इस समय चौतरफा लोग बिजली कंपनी के स्मार्ट मीटर, शहर की बर्बाद हो गई सडक़ों और जल भराव की समस्या से जूझ रहे हैं। दो दिन की बारिश में पूरे शहर की कलई खुल चुकी है। प्रकृति ने चंद घंटों में ही कांग्रेस के सामने ज्वलंत मुद्दे थाली में सजाकर पेश कर दिए, लेकिन किसमें माद्दा है कि एक होकर जनता की आवाज बन सकें। जब 1 अगस्त को जिला कांग्रेस ने जिला मुख्यालय पर इन्हीं जनहित के मुद्दों को लेकर नगर बंद का आयोजन किया तो पूरे बंद के दौरान चंद कांग्रेसी ही नजर आए। जनहित की बात उठाने का दावा करने वाली कांगे्रस के अधिकांश नेता, कार्यकर्ता गायब थे। आज वे भी गायब थे जो माधवगंज, नीमताल, तिलक चौक, बड़ा बाजार, बजरिया आदि चौराहों पर दिन भर चाय-पान के साथ गप्पे लगाकर अपनी राजनीति की दुहाई देते हैं। कांग्रेस जिलाध्यक्ष मोहित रघुवंशी के साथ थे तो गिने-चुने कांग्रेसी। दुनियां जानती है कि इस तरह के बंद करने, पुतले जलाने या मशाल जुलूस निकालने से कोई समस्या हल नहीं होती, लेकिन ज्वलंत समस्याओं पर शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षित कराने, कुनीति का विरोध करने और जनता से ज़ुडने का ये माध्यम तो है ही, इससे कौन इंकार कर सकता है। लेकिन कांग्रेसियों को ऐसे मुद्दे पर भी तेरा-मेरा ही नजर आता है। यह उसके नेतृत्व में है, उसका नाम हो जाएगा, उसकी नेतागिरी चमकेगी। बस, यही शंका-कुशंका कांग्रेसियों का बेड़ा गर्क किए हुए हैं। चाहे पार्टी मेँ कोई पदाधिकारी हो या जनप्रतिनिधि, यह तय है कि जो आज है वह कल नहीं रहेगा। अब जो मु_ी भर कांगे्रसी बचे हैं, उन्हीं में से जिलाध्यक्ष, प्रदेशाध्यक्ष्र और अन्य बड़े पदाधिकारी बनेंगे और नपाध्यक्ष, विधायक और सांसद जैसे पदों का टिकट भी पा सकेंगे। क्योंकि अधिकांश परम्परागत दावेदार तो भाजपा के हो चुके हैं, लेकिन इतने पर भी कांग्रेसियों को न तो सब्र है और न ही समझ। वे अब भी तेरा-मेरा करने में जुटे हुए हैं। आंदोलन का आव्हान किसी ने भी किया हो, पदाधिकारी कोई भी हो, लेकिन मौका तो जनहित के मुद्दे उठाने का था, इसमें शामिल होने से किसी को क्यों ग्रुरेज होना चाहिए था। लेकिन नहीं, अहं की राजनीति हावी है तो कोई क्या करे। अभी कांग्रेस जिलाघ्यक्ष के चुनाव के लिए करीब डेढ़ दर्जन दावेदार सामने आए, लेकिन कांग्रेस के बैनर तले ही जनहित के मुद्दों को उठाने के लिए आयोजित विदिशा बंद के समय सब नदारद। हद है भाई...। क्या ही अच्छा होता यदि जनहित के इन मुद्दों को लेकर किए गए विदिशा बंद के आयोजन में सारी कांग्रेस, पूरे जिले की नहीं तो विदिशा शहर की ही कांग्रेस एकजुट होकर बाजार में निकलती। लोगों को बताती कांग्रेस का हर नेता उनके साथ है। लोगों को भी इन मुद्दों से जोडकऱ बाहर लाती। लेकिन नहीं, ये कैसे हो सकता है, कांग्रेस की परम्परा तो वही है, एक की टांग खींचकर खुद की टांग आगे बढ़ाना। कांग्रेसी हैं तो अपनी परम्पराओं को कैसे भूलेंगे, भले ही अपनी नेतागिरी और पार्टी का अस्तित्व मिट जाए, लेकिन एकला चलो रहे की परम्परा से मुख नहीं मोड़ा जा सकता। धन्यवाद कांग्रेसियो...धन्य है तुम्हारी परम्पराएं और धन्य है तुम्हारी जली हुई रस्से के बल।

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