पत्रकार से साक्षात्कार(इंटरव्यू)में क्या बोले भगवान गणेश

गणेशोत्सव से पहले गणेशजी से साक्षात्कार... 

सावन मास की विदाई हो रही है और भादौं का आगमन। भादौं के नाम से ही मन इसलिए भी उत्साहित हो जाता है क्योंकि इसी माह में हम सबके लाड़ले और बच्चों के फ्रेंड के नाम से विख्यात विघ्न विनाशक गणेश जी का जन्मोत्सव मनता है। पत्रकार की हमेशा से आदत रहती है कि जब भी कोई बड़ी तिथि या उत्सव आ रहा होता है तो उससे संबंधित एक्सक्लूसिव खबर, लेख या संबंधित का साक्षात्कार प्रस्तुत कर अपने सक्रिय होने का प्रमाण दे, बस इसी सोच ने इस बार गणेश जी का साक्षात्कार करने का असाध्य सा मनोरथ किया, प्रभु कृपा ऐसी हुई कि असाध्य भी साध्य हो गया। गणेश जी के दर्शन ही नहीं हुए, बल्कि उन्होंने पर्याप्त समय दिया और मेरी तमाम जिज्ञासाओं को शांत भी किया। प्रस्तुत है, गणों के नायक भगवान गणेश जी से साक्षात्कार के कुछ अंश.... 

सवाल- प्रभु, गणों के नायक बनने की अपनी यात्रा के बारे में बताइएï? 
गणेश जी- (मुस्कराते हुए) इसकी शुरुआत तो बालपन से ही शुरू हो गई थी। एक बार पिताश्री और माताश्री कैलाश पर बैठे थे, उनके ही मन में आया होगा कि गणनायक बनने के लिए मेरी और भैया कार्तिकेय की परीक्षा ली जाए। उन्होंने हम दोनों भाइयों को बुलाकर कहा कि जाओ, पूरे संसार की परिक्रमा कर आओ। जो पूरी परिक्रमा कर सबसे पहले वापस आएगा, वही गणनायक कहलाएगा। इस पर भैया कार्तिकेय खुश होकर अपने वाहन मयूर पर बैठकर उड़ गए और मैं सोचता रह गया कि मेरा वाहन तो मूषक है, मैं इतनी जल्दी पूरे संसार की परिक्रमा कैसे करके आ पाऊंगा। अचानक मेरे मस्तिष्क में विचार आया कि पूरे संसार के पिता और माता तो मेरे सामने मौजूद हैं। फिर माता-पिता ही तो संतान के लिए सारी दुनियां बल्कि उससे बढकऱ होते हैं। बस, मैंने क्षण भर में निर्णय लिया और वहीं बैठे माता-पिता की परिक्रमा कर उनके सामने हाजिर हो गया। वे दोनों चौंक गए, तुम ये क्या कर रहे हो, गए क्यों नहीं संसार की परिक्रमा के लिए। मैंने जवाब दिया, हे पिता श्री, माता पूरा जगत तो आपसे ही चलता है, फिर मेरी तो पूरी सृष्टि तो आप ही हो। संतान के लिए तो सृजनकर्ता भी आप ही हो, यही कारण है कि मैंने अपने संसार की परिक्रमा पूरी कर ली है। मेरे इस उत्तर और मातृ-पितृ भक्ति के साथ ही मेरे तर्क से प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे गणनायक के साथ ही प्रथम पूज्य का अधिकार दे दिया। 


सवाल- प्रभु, धृष्टता के लिए क्षमा करें, लेकिन मन में आपके रूप को लेकर कई सवाल हैं, आज्ञा हो तो पूछूं? 
गणेश जी- (फिर मुस्कराते हुए)पूछो, क्या चल रहा है मन में? 
सवाल- प्रभु, आपका ये बड़ा सा हाथी का मस्तक, बड़े-बड़े कान....? 
गणेश जी- पत्रकार जी, मेरे शरीर का हर अंग कुछ अलग तरह का है यह सही है, लेकिन हर अंग में संसार को देने के लिए एक सीख छिपी है। 
सवाल- प्रभु, शरीर के अंगों से क्या सीख? कुछ बताइए न। 
गणेश जी- देखो, मेरा मस्तक विशाल है, जो यह संदेश देता है कि जीवन में हमेशा बड़ा सोचो, जब सोच ही बड़ी नहीं होगी तो काम कैसे बड़ा कर पाओगे। फिर तुमने कान के बारे में पूछा है तो सुनो, मेरे कान बड़े हैं और हर पल हिलते रहते हैं, इसका अर्थ यही है कि दुनियां में तुम्हारे बारे में हजारों लोग अलग-अलग बोलेंगे। बहुत से लोग अनर्गल प्रलाप करेंगे, लेकिन उस पर ध्यान नहीं देना है, सुनी अनसुनी करोगे तो ही आगे बढेगे, दुनियां की बातें सुनकर रुकना नहीं है। केवल काम की बातों को आत्मसात करो, अन्यथा एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दो। इसलिए ही मेरे कान बड़े और सदा ही हिलते रहते हैं। 
सवाल- प्रभु, आपका शरीर इतना बड़ा, लेकिन आंखें इतनी छोटी क्यों?
गणेश जी- ये इसलिए कि आप कितने ही बड़े क्यों न हों, लेकिन हर चीज, बात, घटना की जांच परख सूक्ष्म नजर से करो। सूक्ष्म जांच के लिए बड़ी आंख की नहीं, सूक्ष्म नजर की आवश्यकता होती है पुत्र। 
सवाल- प्रभु ये तो ठीक है, लेकिन आपका ये उदर, यानी पेट, इसके इतने बड़े होने का क्या राज है? 
गणेश जी- इसका भी गहरा संदेश है पुत्र। दुनियां में कई तरह की बातें और घटनाएं आपके सामने आती हैं, लेकिन सबको कहीं भी कहना या बताना उचित नहीं होता । बातों को पचाना भी सीखो। मेरा बड़ा उदर इसी बात का प्रतीक है, कि इसमें दुनियां की वो तमाम बातें छिपी रहती हैं जो सार्वजनिक तौर पर किसी के सामने या किसी से कहना उचित नहीं होता। ऐसी बातों से हमेशा जीव का नुकसान ही होता है। 
सवाल- प्रभु एक बात और...आप इतने विराट, इतने सक्रिय और ऊर्जावान, फिर आपका वाहन मूषक जैसा छोटा सा जीव क्यों? 
गणेश जी- अपनी सोच बदलो पुत्र...कोई भी जीव छोटा या बड़ा अपने आकार से नहीं होता। उसके गुण-अवगुण ही उसकी भूमिका तय करते हैं। मूषक को मैंने इसलिए अपने वाहन के रूप में चुना है, क्योंकि उसमें मेरे भक्तों के संकट और चिंताओं को काटने का हुनर हैं। संकट के जाल में जब प्राणि फंसता है तो मुझे याद करता है, और मैं तत्काल अपने मूषक के साथ उसके पास पहुंचता हूं तो मूषक ही उसके संकट का जाल काटकर उसे मुक्त करता है। 
सवाल- प्रभु, आपकी बड़ी कृपा है। आखरी सवाल और नाथ...? 
गणेश जी- जल्दी पूछो। 
सवाल- प्रभु, आपकी पूजा किस रूप में श्रेष्ठ होती है? 
गणेश जी- पुत्र, मैं तो सदा से ही भाव का भूखा रहा हूं। इसलिए जीव जिस रूप में मुझे पूरी श्रद्धा से पूजता है तो मैं उसकी पूजन को स्वीकार करता हूं। लेकिन फिर भी मेरी प्रतिमा किसी नदी, जलाशय के पास की पवित्र मिट्टी से मेरे नाम का जाप करते हुए निर्मित की जाए और उसकी ही स्थापना कर गणेशोत्सव में पूजा हो तो वह सर्वाेत्तम है, यह इसलिए भी क्योंकि मिट्टी से बनी प्रतिमाओं मे एक तरह से पंचतत्व शामिल हो जाते हैं और पंचतत्वों से बनी प्रतिमा ही साक्षात रूप में समाहित मानी जाती है। उत्सव के बाद जब मेरी प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है तो वही मिट्टी की प्रतिमा जलाशय में घुलकर वापस पंचतत्व प्रकृति में पहुंच जाते हैं। यह विधि सर्वाेत्तम है, इसलिए हर संभव प्रयास करें कि इस गणेशोत्सव में मेरी प्रतिमा मिट्टी से ही बनाएं और उसकी ही स्थापना करें। और हां, आकार, सुंदरता या भव्यता की अपेक्षा न करें, मैं तो भावों में समाया रहता हूं। जहां अच्छे भाव से बच्चे भी अनगढ़ सी प्रतिमा बना देते हैं मैं उसमें भी समा जाता हूं। लेकिन आडंबर की बिल्कुल जरूरत नहीं, भक्तिभाव से पूजा करो, प्रार्थना करो, अपनी बात कहो वह जरूर मैं सुनता हूं। भौंडे गीतों, कानफोड़ू डीजे और गानों से मेरा भरी सिर दर्द करता है, यह दिखावा मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।

भगवान के इस अद्भुत साक्षात्कार, दर्शन और ज्ञान भरी बातों से मैं प्रफुल्लित था, सूझ नहीं पड़ रहा था क्या करूं। और क्या पूछूं, इसी बीच भगवान गणेश मेरे समक्ष से अंर्तध्यान हो गए और मैं उनके चरणों की रज को अपने माथे पर लगाकर हमेशा की तरह इस बार भी मिट्टी की गणेश प्रतिमा बनाने के विचार में मग्न होकरख् जय श्री गणेश...जय श्री गणेश कहते हुए बाहर आ गया।

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