भगवान शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंगो मे से एक भीमाशंकर ज्योंर्तिलिंग ूमहाराष्ट्र के पुणे जिले में मौजूद है। सहयाद्री पहाडियों और घने जंगल के बीच मौजूद यह ज्योर्तिलिंग शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है। यहां तक पहुंचना भी कम रोमांचक नहीं, भीषण गर्मी के दिनों में भी सुबह-सुबह यहां पहाडिैय़ों और घने जंगल के बीच कोहरा और बादलों का साया दर्शनार्थियों और पर्यटकों को अभिभूत कर देता है। मुख्य सड्क पर वाहनों की पार्किंग के बाद जब मंदिर की ओर चलना शुरू करते हैं तो करीब 240 आसान सी सीढिैय़ों का सफर तय कर मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं। सुबह के समय मंदिर में प्रवेश 4.30 बजे से शुरू हो जाता है। लेकिन मंदिर में प्रात:कालीन दर्शन सुबह 5.30 बजे की कांकड़ आरती के साथ ही शुरू होते हैं। कांकड़ आरती के बाद ही दर्शन का सिलसिला शुरू होता है। गर्भगह में भगवान शिव का स्वयंभू प्रकट ज्योर्तिलिंग मौजूद माना जाता है। इसी ज्योर्तिलिंग पर 13 वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण किया गया। गर्भग्रह के द्वार पर गणेश जी और आसपास शिवगणों की प्रतिमाएं मौजूद हैं। मंदिर नागर शैली का बना हुआ है। गर्भग्रह के बाहर नंदी और फिर कच्छप की प्रतिमाएं हैं। विशाल सभा मंडप है जिसमें बैठकर श्रद्धालु शिव आराधना करते हैं। दर्शन करके बाहर निकलते ही आपको प्राचीनर शनि प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यहीं पास में प्राचीन नंदी प्रतिमाएं और एक भव्य प्रकाशस्तंभ मौजूद है। मंदिर के चारों ओर कई प्राचीन प्रतिमाओं का ंअंकन दिखाई देता है। मंदिर के पीछे की ओर प्राचीन भवनों का निर्माण है और मोक्ष कुंड है, जिसकी कथा महर्षि कौशिक से जुड़ी बताई जाती है। पहले इस कुंड में ही स् नान के बाद दर्शनार्थी ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने पहुंचते थे। मंदिर की पिछली दीवार पर भी शिवगणों की प्रतिमाएं मौजूद दिखाई देती हैं।
भीमाशंकर ज्येातिलिँग की कथा त्रेतायुग से ज़ुड़ी मानी जाती है, उस समय कुंभकरण के पुत्र ने तपस्या करके वरदान प्राप्त किए थे और वह स्वयं को भगवान मानने लगा था। उस समय शिवभक्त राजा को उसने शिव पूजा करने से रोका, बंदी बनाया, लेकिन फिर भी राजा शिव आराधना करता रहा तो भीमा राक्षस ने शिवलिंग को तोडऩे का प्रयास किया। उसी समय शिवजी प्रकट हुए और भीमा का वध किया। इसके बाद देवताओं के अनुरोध पर यहां शिवजी ज्योर्तिलिंग के रूप में स्थापित हुए और यह स्थान भीमाशंकर कहलाया। ऐसी भी मान्यता है कि इसी स्थान पर महादेव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। युद्ध के दौरान शिवजी के पसीने की बूँद से पास ही भीमा नदी प्रकट हुई थी। माता पार्वती ने भी कलमजा माता के रूप में त्रिपुरासुर के वध में शिवजी का साथ दिया था, यह मंदिर भी पास ही मौजूद है। मंदिर में प्रवेश और दर्शन का कोई शुल्क नहीं है। लेकिन वीआईपी प्रवेश के लिए 500 रुपए की रसीद काटी जाती है। सुबह के समय भीड़ अपेक्षाकृत कम रहती है, लेकिन दिन चढं्ने के साथ भीड़ बढ़ती जाती है। वीकेंड पर यह भीड़ बहुत ज्यादा रहती है। पुणे से भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग मंदिर पहुंचने के लिए 120 किमी की दूरी तय करना पड़ती है। यहां खुद के वाहन, कैब, टैक्सी या बसों के जरिए भी पहुंचा जा सकता है। दर्शनार्थियों के लिए यह मंदिर सुबह 5.30 बजे से रात 9.30 बजे तक खुला रहता है। भीमाशंकर पहुंचने और लौटने के समय रास्ते में घने जंग्रल, पहाड् और बादलों का नजारा पर्यटकों और दर्शनार्थियों को खूब रोमांचित करता है।
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