गुप्त काल में वैष्णव धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है ऐरण...








ऐरण यूं तो मप्र के सागर जिले का एक छोटा सा गांव है, लेकिन विदिशा जिले के मंडीबामोरा कस्बे से इसकी दृरी मात्र 15 किलोमीटर है। बीना नदी के किनारे बसा यह गांव गुप्त कालीन वैष्णव मंदिरों, अभिलेखों के कारण ऐतिहासिक है। सागर से इसकी दूरी करीब 90 किलोमीटर है, जबकि बीना रेलवे जंक्शन से यह 25 किमी दूर है। ऐरण महाविष्णु की विशाल प्रतिमा, सबसे बड़ी वराह प्रतिमा और 47 फीट ऊंचे गरूड़ स्तंभ के लिए जाना जाता है। ऐेरण में मौजूद वैष्णव मंदिर, स्तंभ, अभिलेख और प्रतिमाओं के अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि गुप्तकाल में यह स्थान वैष्णव धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद रहा है।

                




कला मर्मज्ञ गुप्त सम्राटों ने यहां अपने आराध्य भगवान विष्णु और उनके अवतारों के भव्य मंदिर बनवाए थे। यहां महाविष्णु का मंदिर विशेष है, जिसमें भगवान विष्णु की चतुभ्र्रुज रूप मे करीब 15 फीट ऊंची प्रतिमा है। इस खड़ी प्रतिमा में भगवान के चरण से लेकर मुकुट तक मौजूद हैं। उनके तीन हाथ आंशिक खंडित हैं। सिर पर किरीट मुकुट और गले में अक्षमाला शोभायमान है। सिर के पिछले भाग में आभामंडल है। गर्भग्रह तक पहुंचने से पहले चार स्तंभों वाले छोटे से मंडप और गर्भग्रह के द्वार से होकर गुजरना पड़ता है। तीन-चार सीढिय़ां नीचे उतरकर मुख्य प्रतिमा तक पहुंचते हैं। इसाके अलावा मंदिर का कोई हिस्सा दिखाई नहीं देता। प्रतिमा भी खुले में मौजूद है, जिसके चारों ओर बाउंड्री बना दी गई है। मंडप के स्तंभ अलंकृत हैं। प्रवेश द्वार पर देवी देवताओं, नागवेलियों के साथ ही गंगा-यमुना नदियों की मानव रूप में प्रतिमाएं मौजूद हैं। महाविष्णु की इस विशाल प्रतिमा के दांई ओर विष्णु के ही वराह अवतार की भारत की सबसे विशाल प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा मौजूइ है। इस प्रतिमा में वराह रूप में भगवान पृथ्वी का उद्धार करते हुए दिखाई देते है। वराह के पूरे शरीर पर अनेकों देवी-देवताओं, ऋषि मुनियों को शिल्प के जरिए उकेरा गया है। यह विशाल प्रतिमा करीब 10 फीट ऊंची और इतनी ही लंबी है। इस वराह प्रतिमा के गले में एक अभिलेख भी दिखाई देता है जो हूण शासक तोरमाण ने छठवीं शताब्दी में उत्कीर्ण कराया था।
जबकि महाविष्णु की प्रतिमा के बांई ओर भगवान के नृसिंह अवतार की प्रतिमा मौजूद है। यह भी खुले में है। इस प्रतिमा का अधिकांश भाग खंडित है। सिंह की मुखाकृति से इसकी पहचान होती है, हाथ खंडित हैं। यह प्रतिमा खड़ी मुद्रा में है। इसके अलावा विष्णु मंदिर के ठीक सामने एक विशाल और अपने आकार से विस्मय में डाल देने वाला 47 फीट ऊंचा गरूड़ स्तंभ यहां आने वालों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यह स्तंभ एक ही शिला का बना हुआ है। इसके शीर्ष के नीचे अशोक स्तंभ की भांति उल्टे कमल की आकृति है, इसके ऊपर दो सिंहों की आकृति है और फिर सबसे ऊपर भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की मानव रूप में प्रतिमा मौजूद है। इस स्तंभ पर 484 ईसवी का बुधगुप्त का लेख उत्कीर्ण है। इसके अलावा इसी महाविष्णु मंदिर परिसर में एक दीप स्तंभ सहित अनेक प्रतिमाओं और मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। एक शेर की प्रतिमा, गौरी की प्रतिमा, शिवजी, गणेश जी सहित अनेक देवी देवताओं की प्रतिमाएं यहां मौजूद हैें।

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