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विदिशा से मिला देवी चामुंडा का यह शीश 10 वीं शताब्दी के अद्भुत शिल्प का परिचायक है। |
विदिशा से मिला देवी चामुंडा का यह शीश 10 वीं शताब्दी के अद्भुत शिल्प का परिचायक है। यह किसी बड़ी और विकराल प्रतीत होने वाली प्रतिमा का शीश है। इसमें चामुंडा अपने जाने पहचाने रौद्र रूप में दिखाई देती हैं। इनके मस्तक पर त्रिपुंड की सलवटें बनाने में शिल्पी ने पूरी उत्कृष्टता दिखाई है। बालों का जूड़ा और पूरा केश विन्यास अत्यंत प्रभावी है। जटा मुकुट पर चार कपालों की माला रूप में मौजूदगी, उभरे हुए बेहद प्रभावी नेत्र और खुला हुआ मुख देवी चामुंडा के विकराल रूप को प्रमाणित करता है। प्रतिमा का मुख कुद्ध और बाहर निकली हुई आंखों सें भयावह नजर आता है। देवी चामंडा तांत्रिका संप्रदाय में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। देवी चामुंडा हिन्दू देवियों में से एक और अपने विकराल रूप के लिए जानी जाती हैं। उन्हें चामुंडेश्वरी देवी, चामुंडी या चर्चिका देवी भी कहा जाता है। ये सप्तमातृकाओं में से एक मानी जाती हैं। इन देवी को भीषण युद्ध की देवी के रूप में भी माना जाता है। सिर पर नरमुंडों की उपस्थिति चामुंडा देवी से जुड़े प्रतीक के रूप में जाी जाती हैं जो उनके उग्र स्वभाव, दुष्ट दलन रूप को दर्शाती है। दरअसल इनका चामुंडा नाम चंड और मुंड नाम के दो दैत्यो के वध करने के बाद दिया गया। अब यह प्रतिमा राज्य संग्रहालय भोपाल में मौजूद है।
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