असुर की धरती गयाजी में लाखों पितरों की मुक्ति का मेला


विष्णुपद मंदिर
बिहार के शहर गयाजी का नाम मूल रूप से गयासुर नामक एक दानव के नाम से ही पड़ा है। यह वह नगरी है जहां देश-विदेश से लोग अपने पुरखों की मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान के लिए पहुंचते हैं।  पितृ पक्ष में यहां पिंडदानियो का मेला है। लाखों लोग रोजाना यहां अपने पुरखों का पिंडदान करने फल्गू नदी, विष्णुपद मंदिर, प्रेतशिला, अक्षयवट और सीताकुंड सहित 52 स्थानों पर पिंडदान करने पहुंच रहे हैं। पूरे शहर में पितृपक्ष का उत्सव है। गया जी की अर्थव्यवस्था में इस पखवाड़े का बहुत बड़ा योगदान है। 


अक्षय वट पर पिंड चिपकाने की परंपरा

वेदियों पर पिंडदान...

यूं तो गया जी में 52 से अधिक पिंडदान वेदीयां हैं। लेकिन इनमें से फल्गु नदी का तट, विष्णुपद मंदिर, अक्षय वट, सीता कुंड, प्रेतशिला सहित कुछ अन्य स्थान प्रदान के लिए प्रमुख माने जाते हैं। इसके अलावा गया जी के विभिन्न स्थानों पर कदम कदम पर पिंडदान किया जा रहा है। कई जगह ऐसी है जहां पिंडदान के लिए बैठने तक का स्थान उपलब्ध होना मुश्किल हो रहा है। विष्णुपद मंदिर में पिंडदान के बाद वहां की दीवारों और स्तंभों पर पिंड चिपकाने की परंपरा अब भी जारी है। अक्षय वट पर लोग अपने पूर्वजों की तस्वीरें ले जाकर श्रद्धा से उन्हें वहां टांग देते हैं। अक्षय वट पर भी पिंड चिपकाने की परंपरा है।

फल्गु नदी का तट पर  पिंडदान

सात पीढ़ियों की मुक्ति का वरदान...

मान्यता है कि गयासुर नाम के दानव ने कठोर तप कर भगवान विष्णु से वर लिया था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाए। ये वरदान मिलते ही पाप बहुत तेज़ी से बढ़े। लोग खूब पाप करते और गयासुर का दर्शन कर पाप मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेते। इस पर देवताओं ने युक्ति लगाई। गयासुर से हवन के लिए पवित्र जगह मांगी तो उसने अपना शरीर दे दिया, वह जहां लेटा वह जमीन 5 कोस की थी, वही क्षेत्र गया जी कहलाया। गयासुर ने इससे पहले भगवान विष्णु से वचन लिया की मेरे शरीर पर आपके चरण चिन्ह अंकित हों और जो मेरे शरीर पर तर्पण, पिंडदान करे उसकी सात पीढ़ियों को मुक्ति मिले, उद्धार हो। भगवान ने गयासुर का सर्वजन हिताय समर्पण देखकर उसे तथास्तु कहा और अपना पैर उसके शरीर पर रख दिया जो विष्णुपद के नाम से विख्यात है और जहां आज विशाल मंदिर बना हुआ है और पिंडदान भी होता है। गया जी इसीलिए विख्यात है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि वहां सात पीढ़ीयों का उद्धार होता है। एक यह भी मान्यता है कि यहां भगवान राम और सीता भी महाराज दशरथ के तर्पण और उनके पिंडदान के लिए पहुंचे थे।

सारी होटल बुक, धर्मशाला में भी जगह नहीं...

पितृपक्ष के लिए देश-विदेश से आने वाले पिंडदानियो को यहां रहना और रुकना बहुत मुश्किल हो रहा है। जिन्होंने पहले से होटल बुक करा लिए हैं उन्हें तो परेशानी नहीं हो रही लेकिन अचानक आज आने वाले पिंडदानियो को रुकने की परेशानी है। ऐसे में वे पिंडदान कराने वाले पंडाओ के ठिकाने पर अथवा धर्मशाला में किसी तरह डेरा डालने मजबूर हो रहे हैं। होटल सहित धर्मशाला अभी पूरी तरह से पैक है।

खूब उत्साहित है गयाजी का बाजार

पितृपक्ष में दूर-दूर से आने वाले पिंडदानियो के कारण गयाजी का बाजार खूब उत्साहित है। यहां अधिकांश मार्केट पूरी रात खुले हुए हैं। जहां चाय नाश्ते से लेकर, लिट्टी चोखा, तिलकुट और रोटी सब्जी भी जगह जगह उपलब्ध है। 

चौकस है पुलिस व्यवस्था...

पितृपक्ष में पिंडदान के लिए लाखों की संख्या में पिंडदानी गयाजी पहुंच रहे हैं अलग-अलग पंडालों में तर्पण की व्यवस्था है। श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह कैंप बनाए गए हैं जहां स्वास्थ्य परीक्षण के साथ ही पुलिस सहायता केंद्र स्थापित हैं। सभी जगह पुलिस की पर्याप्त व्यवस्था है जो पिंडदानियों की मदद कर रही है।









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