नगरपालिका अध्यक्ष भले ही श्रीमती प्रीति शर्मा हों, लेकिन पूरे कामकाज की बागडोर चूंकि उनके पति राकेश शर्मा के हाथों में है, इसलिए प्रतिष्ठा भी उनकी ही दांव पर लगी है। शहर में यह बात आम है कि....विदिशा क्षेत्र में यह लड़ाई वर्चस्व की है।। जबकि नगरपालिका चुनाव के समय तमाम विरोधोंं को झेलने और सबसे बुराई लेने के बावजूद विधायक टंडन ने प्रीति राकेश शर्मा को ही अध्यक्ष पद का दावेदार बनवाया था और उनकी जीत सुनिश्चित करने की इबारत भी लिखी थी। अप्रत्यक्ष पद्यति से अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ और उसमें पुख्ता रणनीति और साम-दाम-दंड-भेद के चलते प्रीति शर्मा के खेमे में निर्दलीय पार्षद भी शामिल हो गए थे। लेकिन अब पार्षदों का एक खेमा नपाध्यक्ष के खिलाफ आ खड़ा हुआ है। भाजपा में चल रही खींचतान का असर तब देखने को मिला था जब... भाजपा संगठन में जिलाध्यक्ष पद पर पद ग्रहण करने के बाद ही महाराज सिंह ने नपाध्यक्ष को नोटिस जारी किया था। इसके बाद भी कहीं सडक़ों पर डामरीकरण और सीसी के मामले हों या फिर पार्षदों के अन्य मसले यह विवाद और बढ़ता ही गया। अब पानी सिर से ऊपर हो गया है, यही कारण है कि पूरे शहर में जहां जल निकासी, खराब सडक़ों और सफाई को लेकर त्राहि त्राहि मची है, वहीं भाजपा पार्षदों का एक बड़ा समूह अध्यक्ष को उनकी कुर्सी से हटाने के लिए हर ड्यौढ़ी पर मत्था टेक रहा है।
नपाध्यक्ष प्रीति राकेश शर्मा को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा, इसके लिए पार्षदों की यह बड़ी टीम भोपाल में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित संगठन के वरिष्ठ नेताओं से भी मिल चुकी है लेकिन फिर भी अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं मिला है जिसके चलते यह कहा जा सके कि प्रीति राकेश शर्मा की विदाई जल्दी होने वाली है। वैसे भी तमाम बुराईयों, विषमताओं और छिछालेदार के बावजूद भाजपा का संगठन यह नहीं चाहेगा कि अपने बहुमत वाली परिषद में अपने ही नपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उसे हटवाने का कलंक लिया जाए। इसलिए प्रयास यह हो सकता है कि अध्यक्ष को इसके लिए राजी किया जाए कि वे इस्तीफा दे दें, लेकिन यह काम भी आसान नहीं है। नपाध्यक्ष पति राकेश शर्मा भी अपनी जिद के पक्के हैं और उन्होंने जब इतनी मेहनत और पैसा लगाकर यह चुनाव जीता है तो वे पांच साल से पहले यूं कुर्सी छोडऩा कतई पसंद नहीं करेंगे, भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकाना पड़े। वैसे भी राजनीति में वे बहुत ज्यादा पुराने नहीं हैं, इसलिए उनके पास खोने को ज्यादा कुछ है नहीं, मूल रूप से वे उद्योगपति हैं और केवल प्रतिष्ठा तथा रुचि के लिए राजनीति में हैं। उधर पार्षदों के रवैये और भोपाल तथा संगठन के बड़े नेताओं का रुख भांपते हुए नपाध्यक्ष ने भी कड़े निर्णय लिए हैं। उन्होंने विरोध करने वाले पार्षदों को पीआईसी से निकालकर समर्थक पार्षदों को मौका देकर उन्हें अपने से जुड़ेे रहने का ईनाम दिया है इससे तिलमिलाए कई पार्षद अब और मुखर हो गए हैं। विदिशा से ट्रेन द्वारा वापस होते भाजपा जिलाध्यक्ष से मिलने और उन्हें अपना दुखड़ा सुनाने असंतुष्ट पार्षदों का का एक बड़ा धड़ा रेलवे स्टेशन जा पहुंचा था, यहां वरिष्ठ पार्षद अरुणा मांझी ने नपाध्यक्ष की कार्यशैली पर तीखे प्रहार करते हुए बदलाव की मांग की थी। लेकिन सबको पता है कि संगठन अपनी बदनामी और खुद अपनी ही पार्टी पर कालिख लगाना नहीं चाहेगा। इधर नगरपालिका परिषद के कामकाज और विभिन्न कार्यों को लेकर हुए लमसम भुगतान की जांच शुरू हो गई है। इस संकट को भांपते हुए परिषद के पूर्व कार्यकाल की जांच कराने की भी मांग सामने आ गई है। यानी कोई कम नहीं बैठ रहा, एक तरफ से आरोप लगते हैं तो दूसरी तरफ से तत्काल प्रत्यारोप आ जाता है। एक तरफ से वार होता है तो तत्काल प्रतिकार आता है। एक तीर सामने से चलता है तो सामने दूसरा तीर चलाने में देर नहीं लगती। तीर पर तीर चल रहे हैं। लेकिन इस सबके बीच नपाध्यक्ष और उनके पति की मन:स्थिति समझना भी आसान नहीं है। वे राजनीति में न तो ज्यादा पुराने हैं और न ही उन्हें सियासत का खिलाड़ी माना जा सकता है, इसलिए इस उठापटक के प्रयासों से ही वे यकीनन हड़बड़ाए हुए हैं, हालांकि उनके द्वारा लिए जा रहे कुछ सख्त रवैये इस बात का ऐलान है कि हम किसी भी दबाव के आगेे झुकने को तैयार नहीं हैं।
लेकिन इस सबके बीच उस नगर और नगर के लोगों का क्या, जिन्होंने पांच साल अपने शहर के विकास और मूलभूत सुविधाओं के लिए भाजपा को बागडोर सौंपी थी। विदिशा में करोड़ों की लागत से बनीं सडक़ें बनने के चंद दिनों बाद ही उखडकऱ लहुलुहान हो चुकी हैं। जरा सी बारिश में मोहल्ले ही नहीं बल्कि मुख्य मार्ग और कॉलोनियां जलमग्र हो रही हैं। बहुप्रतीक्षित बेतवा के चोरघाट नाले पर एसटीपी अब तक नहीं बन पाया। सफाई व्यवस्था बिलबिला रही है और यह सब देखते हुए भी लोग इस बात से हैरान हैं कि सुनने वाले तो सिर्फ अपनी सियासत मेंं उलझते हैं। नगर की हालत देखने और नागरिकों की सुनने वाला कोई नहीं। विदिशा की नगरपालिका परिषद अपने ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर है। यकीनन, ये वर्चस्व की लड़ाई है, और राजनीति में ये कोई नई बात भी नहीं, लेकिन फिर भी इस सबके बीच नाश हो रहा है शहर का, शहर के लोगों की भावनाओं का, सुविधाओं का और सपनों का।

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