काशी के विद्वानों पर सिरोंज के विद्वानों की जीत का प्रतीक "कलगी-तुर्रा"

कलगी-तुर्रा विजय निशानों को निकालने की परम्परा

मप्र के विदिशा जिले के सिरोंज नगर का अपनी अनोखी परम्पराओं के लिए अलग ही स्थान है। वाक्या करीब 300 साल पुराना माना जाता है, लेकिन जीत का असर और खुशी ऐसी थी कि आज भी उसका उत्सव पूरे शहर में धूमधाम से मनाया जाता है। यह खुशी थी शास्त्रार्थ में काशी के पंडितों पर सिरोंज के विद्वानों की लगातार तीन बार जीत की। 

कलगी-तुर्रा, हां यही हैं दो पक्षों के प्रतीक। लेकिन ये पूरा मामला साहित्य से जुड़ा है। साहित्य भी ऐसा जिसे फड़ साहित्य माना जाता है, यानी जिसे जमीन(फड़)पर बैठकर कहा और सुना जाए। दरअसल यह निराकार और साकार ब्रम्ह के स्वरूपों की ज्ञान और विनोदपूर्ण चर्चा होती है जिसे ख्याल के रूप में गूढ़ तो कभी ठिठौली वाली शब्दावजी के साथ गाया जाता है। 

सिरोंज के जानकार और ज्योतिषि परिवार के सदस्य उमाकांत शर्मा बताते हैं कि होली की दूज को यहां विजय निशानों को निकालने की परम्परा है। दरअसल काशी के विद्वानों को सिरोंज के विद्वानों ने लगातार तीन बार शास्त्रार्थ में पराजित किया था। पहली बार रावजीपुरा के तिवारी परिवार, दूसरी बार पचकुंइया के शुक्ल परिवार और तीसरी बार गणेश की अथाई के ज्योतिषि परिवार ने काशी के विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। इस विजय के प्रतीक के रूप में अब भी यहां विजय निशान निकाले जाते हैं, लेकिन काशी के विद्वानों का चौथा निशान भी सिरोंज के विद्वानों ने जीत के स्वरूप में रख लिया था जो हरिपुर से निकाला जाता है। दरअसल दूज पर सिरोंज में मनाया जाने वाला कलगी-तुर्रा उत्सव उसी शास्त्रार्थ की जीत की स्मृति में मनाया जाता है। यह क्षेत्र की गौरवशाली और ज्ञानमयी परम्परा का भी प्रतीक है। 

ढप पर बांधे जाते हैं कलगी-तुर्रा

कलगी-तुर्रा वही हैं जो राजा महाराजाओं की पगड़ी पर सजते हैं। लेकिन ज्ञान और साहित्य की इस परम्परा में इन्हें ढप पर बांधा जाता है। एक ढप पर बांधा जाने वाला पीला निशान तुर्रा कहलाता है तो दूसरे ढप पर बांधा जाने वाला हरा निशान कलगी कहलाता है। 

ब्रम्ह के  स्वरूप हैं ये निशान

सिरोंज के बुजुर्ग बताते हैं कि इन निशानों में तुर्रा निराकार ब्रम्ह के स्वरूप में जाना जाता है। उसके साहित्य में निराकार ब्रम्ह के ही दर्शन होते हैं जबकि कलगी साकार ब्रम्ह का प्रतीक है और होली के विशेष मौके पर ये प्रतीक सम्मानपूर्वक निकाले जाते हैं। सिरोंज के ज्योतिषि परिवार के पं नलिनीकांत शर्मा और उमाकांत शर्मा सहित विद्वान भी इसमें उत्साह से शामिल होते हैं। 

लिखे गए हैं कलगी-तुर्रा पर शोध ग्रंथ

सिरोंज के ज्योतिषि परिवार के उमाकांत शर्मा बताते हैं कि कलगी-तुर्रा की रचनाएं ख्याल के अंदाज में सवाल जवाब के रूप में होती हैं। यानी एक पक्ष अपनी रचनाओं से सवाल करता है तो दूसरा पक्ष रचनाओं से ही उनका जवाब भी देता है। कई बार इनकी शब्दावली बड़ी गूढ़ होती है तो कई बार देशी अंदाज में हास्यपूर्ण भी। फड़ साहित्य के रूप में प्रचलित इन रचनाओं पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके है।

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