MP की उदयगिरि पहाड़ी पर गुफाओं में उकेरा शिल्प का संसार

उदयगिरि की गुफा क्रमांक 5 में विष्णु के वराह अवतार की पूरी कथा ही पत्थर पर उकेर दी

इतिहास, संस्कृति और कला की नगरी विदिशा में उदयगिरि की पहाड़ी पर जैसे गुफाओं में शिल्पियों ने शिल्प का सागर उड़ेल दिया है। पांचवी शताब्दी में चंद्रगुप्त द्वितीय के समय बनाई गई इन गुफाओं में सर्वधर्म समभाव की भावना के साथ ही शिल्प की पराकाष्ठा दिखाई देती है। यहां मौजूद शिलालेख के अनुसार सम्राट चंद्रगुप्त खुद यहां आए भी थे।  उदयगिरि की इस पहाड़ी पर 1 से लेकर 20 तक गुफाएं हैं, इनमें से 18 गुफाएं हिन्दू धर्म, दो गुफाएं जैन धर्म को समर्पित हैं, जबकि पहाड़ी पर बौद्ध धर्म के स्तूप और बौद्ध विहार के अवशेष हैं। इस प्रकार यह पहाड़ी एक साथ हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म की त्रिवेणी का संदेश देती है। पहाड़ी पर गुफा क्रमांक 1 और 20 ऊपर की ओर हैं, जबकि शेष 18 गुफाएं पहाड़ी की तलहटी में मौजूद हैं। 

उदयगिरि में खूबसूरत शिवलिंग
उदयगिरी की गुफाओं में से गुफा क्रमांक 3, 4, 5 और 6 के साथ ही गुफा क्रमांक 13 शिल्प और कला की दृष्टि से दर्शनीय है। गुफा क्रमांक 4 में कार्तिकेय, 5 में विशाल वराह प्रतिमा और 6 में बाल गणेश, महिषासुरमर्दिनी सहित अन्य प्रतिमाएं कला की पराकाष्ठा प्रतीत होती हैं। जबकि गुफा 13 में एक ही चट्टान को काटकर उकेरी गई भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा दर्शनीय है।

गुफाओं में शिल्पियों ने शिल्प का सागर उड़ेल दिया

सबसे प्राचीन और दो भुजी गणेश प्रतिमा

गुफा क्रमांक पांच उदयगिरि की सबसे भव्य और विशाल गुफा के रूप में मौजूद है। यहां भगवान विष्णु के नर वराह अवतार को अत्यंत भव्य तरीके से विशाल चट्टान पर उकेरा गया है। यह प्रतिमा गुप्त काल के उत्कृष्ट शिल्प कौशल का प्रमाण है। विष्णु के इस वराह रूपी प्रतिमा में उनका शारीरिक सौष्ठव देखते ही बनता है। विशाल प्रतिमा में वे अपने दांत से पृथ्वी को उठाए हुए दिखाए गए हैं। पृथ्वी के उद्धार और भगवान के इस रूप को देखकर हर्षित होते देवताओं, ऋषि-मुनियों तथा नाग-किन्नरों की प्रतिमाओं का अंकन है। सृष्टि रचियता ब्रम्हा और शिवजी की प्रतिमाएं विष्णु की इस लीला को देखते हुए उत्कीर्ण किए गए हैं। 

पुरातत्ववेत्ता डॉ नारायण व्यास मानते हैं कि इस गुफा में उत्कीर्ण गंगा-यमुना की प्रतिमाएं मानव रूप में गंगा-यमुना नदियों का पहला शिल्प है। वराह भगवान पृथ्वी को समुद्र से निकालकर ला रहे हैं, इसलिए प्रतिमा के पृष्ठभाग में समुद्र की लहरों का भी चट्टान पर सुंदर शिल्पांकन मिलता है। इस प्रतिमा में भगवान  विष्णु का यह रूप अपने बांये पैर से नागराज को दबाए हुए हैं, जबकि नाग के पास ही एक अन्य प्रतिमा मौजूद है, जो किसी राजा की प्रतीत होती है, लेकिन उसे समुद्र का रूप बताया गया है। वरुण देव अपने हाथ में जल कलश लिए दिखाई दे रहे हैं। गुप्तकाल में वैष्णव धर्म की अनेक प्रतिमाएं मिलती हैं। वराह अवतार की भी प्रतिमाएं बहुत मिलती हैं, लेकिन उदयगिरि के इस वराह प्रतिमा जैसा शिल्प, आकार और बारीकी से उकेरी गई वराह अवतार की पूरी कथा कहीं और नही मिलती।

सबसे प्राचीन महिषासुरमर्दिनी

गुफा क्रमांक 6 भी अत्यंत आकर्षक और दर्शनीय है। शिल्प जैसे बोल पड़ता है। इसे यहां मौजूद सनकणिका जनजाति के मुखिया के एक लेख के कारण सनकणिका गुफा कहा जाता है, इस लेख में उत्तर-पूर्वी मालवा पर चंद्रगुप्त द्वितीय की विजय का उल्लेख है। गुफा के अंदर केवल शिवलिंंग मौजूद है। लेकिन इस शिवलिंग से ज्यादा भव्य और दर्शनीय इस गुफा के बाहर का दृश्य है, जिसमें चट्टान पर अत्यंत प्रभावी ढंग से बाल गणेश, विष्णु, महिषासुरमर्दिनी और द्वारपालों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई हैं। गुफा के द्वार पर चौखट की शक्ल में सुंदर नक्काशी की गई है। जबकि एक ओर कोने में चट्टान पर ही भगवान गणेश के बालरूप को अत्यंत मोहक तरीके से उकेरा गया है। यह गणेश प्रतिमा इस मायने में अनूठी है कि इसके सिर पर न तो मुकुट है और न ही शरीर पर कोई वस्त्र या आभूषण। बस गले में एक हार नुमा संरचना नजर आती है। यहां गणेश चार भुजाधारी नहीं बल्कि दो भुजाओं वाले ही बनाए गए हैं। ये बैठी हुई मुद्रा में प्रतिमा है। पुरातत्ववेत्ता डॉ नारायण व्यास की मानें तो उदयगिरि में मौजूद यह गणेश प्रतिमा सबसे प्राचीनतम गणेश प्रतिमाओं में से एक है। वे मानते हैं कि संभवत: यहां से ही गणेश प्रतिमाओं को बनाने का चलन शुरू हुआ हो। इसी गणेश प्रतिमा के पास गुफा 6 के द्वार के दोनों ओर भगवान विष्णु की चट्टान पर ही उकेरी गई प्रतिमाएं हैं, इनमें से एक थोड़ी छोटी और दूसरी बड़ी है। इन प्रतिमाओं में भगवान विष्णु अक्षमाला और अपने किरीट मुकुट के साथ नजर आते हैं। उनके साथ शंख-चक्र आदि भी दिखते हैं। यूं तो यह शिव को समर्पित गुफा है, जिसमें में रोमन शैली के दर्शन द्वारपालों की प्रतिमाओं और उनके केश विन्यास में प्रतीत होता है। इसी गुफा के बाहर विष्णु प्रतिमा के पास महिषासुरमर्दिनी की बेहद प्रभावी प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यहां देवी दुर्गा अपने 12 भुजीय रूप में महिषासुर का मर्दन करते हुए नजर आती हैं। वे अपने एक पैर से महिषासुर यानी भैंसे के रूप में राक्षस का सिर दबाए हुए हैं जबकि एक हाथ से पिछले पैर को खींचते हुए जैसे वे महिषासुर को दो भागों में चीर रही हैं। उनके हाथों में अनेक प्रकार के आयुध हैं। उनका केशविन्यास काफी आकर्षक है, वे इस प्रतिमा में रौद्र रूप में दिखाई देती हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के यहां लिखे विवरण में माना गया है कि यहां संभवत: पहली बार महिषासुरमर्दिनी का अंकन हुआ है। इसी प्रकार बाल गणेश की प्रतिमा का अंकन भी यहां अपनी प्रारंभिक अवस्था को दर्शाता है। यहां पास ही सप्तमातृकाओं को भी एक चट्टान पर उकेरा गया था, जिनके आसपास गणेश जी और शिव के गण वीरभद्र की प्रतिमाएं थीं, लेकिन अब ये प्रतिमाएं नष्ट हो चुकी हैं। 


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